Soybean Variety NRC 150 | सोयाबीन कि यह वैरायटी JS 9560 को टक्कर देगी, पैदावार 38 क्विंटल/हे., सभी विशेषताओं के साथ संपूर्ण जानकारी..
Soybean variety NRC 150
Soybean variety NRC 150 | पिछले कुछ वर्षों से मानसून अनियमित हो गया है। मानसून की इसी प्रतिकूलता के कारण इसका सीधा असर खेती पर पड़ रहा है। मानसून का सबसे ज्यादा असर खरीफ की फसल पर होता है, क्योंकि यह फसल पूरी तरह मानसून पर आधारित रहती है। अनियमित मानसून के चलते कभी अधिक वर्षा एवं कभी सूखे की स्थिति से किसानों को काफी हानि उठानी पड़ती है।
यही कारण है कि किसान कम अवधि की फसल की बोवनी करना पसंद कर रहे हैं, ताकि विपरीत परिस्थिति में फसल का उत्पादन प्रभावित न हो। कम अवधि की खरीफ की फसल में सबसे अधिक लोकप्रिय सोयाबीन की वैरायटी जेस 9560 (Soybean variety NRC 150) है, किंतु इसके स्थान पर अब यह किस्म भी किसानों को अच्छा मुनाफा देगी, आईए जानते हैं सोयाबीन की इस नवीनतम वरायटी के बारे में..
JS 9560 की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हई
Soybean variety NRC 150 | खरीफ की फसल के दौरान पिछले कुछ सालों से सोयाबीन की जेस 9560 सोयाबीन की किस्म कम अवधि की होने के साथ-साथ पैदावार में के मामले में भी किसानों की कसौटी पर खरी उतरी है। सोयाबीन की यह किस्म जल्दी पक जाती है। जिसके कारण अनियमित मानसून के दौरान उपज प्रभावित नहीं होती है।
वहीं दूसरी ओर किसानों को रबी की फसल लेने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। लेकिन अब लंबे समय से उपयोग में होने के कारण जेस 9560 के रोग प्रतिरोधक क्षमता दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। जिसके कारण इस सोयाबीन की इस वैरायटी (Soybean variety NRC 150) पर सबसे अधिक कीट एवं रोग का प्रभाव हो रहा है। सोयाबीन की जस 9560 वैरायटी पर पीला मोजेक रोग का प्रभाव सबसे अधिक होने लगा है।
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एमपी राजस्थान के लिए सबसे उपयुक्त रहेगी नवीन किस्म
Soybean variety NRC 150 | सोयाबीन की NRC 150 किस्म आईसीएआर-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर (मध्य प्रदेश) द्वारा विकसित की गई है। सोयाबीन की यह किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश का बुदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र का विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए अनुशंसित की गई है।
कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की यह किस्म विकसित की
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के किसान प्रमुखता से सोयाबीन की खेती करते हैं। वहीं विश्व में अमेरिका, ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे देशों में भी बड़े पैमाने पर सोयाबीन की खेती होती है। कुल सोयाबीन उत्पादन में इन तीनों देशों का वर्चस्व है और ये पूरे विश्व में 80 प्रतिशत सोयाबीन की आपूर्ति करते हैं।
वहीं दूसरी ओर भारत की तुलना में विदेश में सोयाबीन की लागत कम एवं उत्पादन अधिक होता है जिसके कारण वहां पर भाव भी अधिक कम ही रहते हैं। भारतीय किसानों को विदेशी सोयाबीन Soybean variety NRC 150 से प्रतिस्पर्धा करने के लिए उसी के अनुरूप अधिक उपज एवं लागत कम वाली सोयाबीन की फसल बोना पड़ेगी।
कृषि वैज्ञानिकों ने इसी का निदान निकलते हुए जेस 9560 के समकक्ष एनआरसी 150 सोयाबीन की किस्म को विकसित किया है। पिछले वर्ष इस सोयाबीन को कई क्षेत्रों में बोया गया एवं ट्रायल किया गया। सभी ओर से सोयाबीन की इस किस्म के अच्छे रिजल्ट प्राप्त हुए हैं।
NRC 150 सोयाबीन की किस्म गंध मुक्त
Soybean variety NRC 150 | सोयाबीन का सबसे अधिक उपयोग सोया तेल में हो रहा है सोयाबीन में गंध होने के कारण इससे बने खाद्य पदार्थों को कम पसंद किया जाता है। सोयाबीन की प्राकृतिक गंध पसंद नहीं आने के कारण कई लोग इससे बने खाद्य उत्पादों का इस्तेमाल करने से परहेज करते हैं,
लेकिन इंदौर के भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (IISR) के वैज्ञानिकों ने इसका तोड़ निकालते हुए सोयाबीन की अनचाही गंध से मुक्त किस्म विकसित करने में कामयाबी हासिल की है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई सोयाबीन की एनआरसी 185 किस्म गंध मुक्त है।
एनआरसी 150 सोयाबीन किस्म की प्रमुख विशेषताएं
Soybean variety NRC 150 | अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसंधान परियोजना की इंदौर द्वारा तैयार की गई सोयाबीन की उन्नत किस्म ‘एनआरसी 150’ की खेती किसानों को अच्छा फायदा देगी यह किस्म सोयाबीन की जेस 9560 किस्म के अनुसार ही जल्दी पकेगी एवं गंध मुक्त रहेगी। आईआईएसआर वैज्ञानिकों वर्षों की मेहनत के बाद अनुसंधान में विकसित यह किस्म सोयाबीन की प्राकृतिक गंध के लिए जिम्मेदार लाइपोक्सीजिनेज-2 एंजाइम से मुक्त है।
अर्थात सोयाबीन की इस किस्म से बनने वाले सोया दूध, सोया पनीर, सोया टोफू आदि उत्पादों में यह गंध नहीं आएगी। IISR के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, सोयाबीन की ‘एनआरसी 150’ किस्म (Soybean variety NRC 150) प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर है और कुपोषण दूर करने के लक्ष्य के साथ विकसित की गई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अनचाही गंध से मुक्त होने के कारण सोयाबीन की इस किस्म से बने खाद्य पदार्थों का आम लोगों में इस्तेमाल बढ़ेगा।
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JS 9560 को टक्कर देगी यह वैरायटी
Soybean variety NRC 150 | सोयाबीन की सबसे अधिक पॉपुलर किस्म जेस 9560 है, यह किस्म 95 दिन की अवधि में पक जाती है। सोयाबीन की इस किस्म को अब NRC 150 वैरायटी टक्कर देगी।इंदौर से ही विकसित एक अन्य सोयाबीन किस्म एनआरसी 150 जो केवल 91 दिन में परिपक्व होती है, सोया गंध के लिए जिम्मेदार लाइपोक्सीजिनेज -2 एंजाइम से मुक्त है तथा चारकोल सड़ांध रोग के लिए प्रतिरोधी है।
इन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त रहेगी एनआरसी 150 सोयाबीन किस्म
सोयाबीन की NRC 150 किस्म (Soybean variety NRC 150) आईसीएआर-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर (मध्य प्रदेश) द्वारा विकसित की गई है। सोयाबीन की एनआरसी 150 किस्म को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश का बुदेलखंड, राजस्थान का क्षेत्र, गुजरात और महाराष्ट्र का मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र के लिए अनुशंसित किया गया है।
एनआरसी 150 की पैदावार कितनी है
Soybean variety NRC 150 | कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई इस किस्म को ट्रायल के तौर पर पिछले वर्ष कई क्षेत्रों में बोया गया। जहां पर इस किस्म की पैदावार अच्छी हुई। सोयाबीन की यह किस्म 7 क्विंटल प्रति बीघा की पैदावार देगी। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन की इस किस्म से 35 से 38 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार होगी।
सोयाबीन की वैज्ञानिक तरीके से खेती कैसे करें
सोयाबीन की खेती अधिक हल्की रेतीली व हल्की भूमि को छोड्कर सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है परन्तु पानी के निकास वाली चिकनी दोमट भूमि सोयाबीन के लिए अधिक उपयुक्त होती है। जहां भी खेत में पानी रूकता हो वहां सोयाबीन ना लें।
ग्रीष्म कालीन जुताई 3 वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य करनी चाहिए। वर्षा प्रारम्भ होने पर 2 या 3 बार बखर तथा पाटा चलाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। इससे हानि पहुचाने वाले कीटों की सभी अवस्थाएं नष्ट होगीं।
ढेला रहित और भूरभुरी मिटटी वाले खेत सोयाबीन (Soybean variety NRC 150) के लिए उत्तम होते हैं। खेत में पानी भरने से सोयाबीन की फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अत: अधिक उत्पादन के लिए खेत में जल निकास की व्यवस्था करना आवश्यक होता है। जहां तक संभव हो आखरी बखरनी एवं पाटा समय से करें जिससे अंकुरित खरपतवार नष्ट हो सके। यथा संभव मेड और कूड बनाकर सोयाबीन बोएं।
सोयाबीन की बीज दर
छोटे दाने वाली किस्में – 70 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर (Soybean variety NRC 150)
मध्यम दोन वाली किस्में – 80 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर
बडे़ दाने वाली किस्में – 100 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर
सोयाबीन बोने का समय
Soybean variety NRC 150 | जून के अन्तिम सप्ताह में और जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त है बोने के समय अच्छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेमी गहराई तक उपयुक्त नमी होना चाहिए। अगर बुवाई करने में विलंब हो रहा हो (जुलाई के प्रथम सप्ताह के पश्चात ) तो बोनी की बीज दर 5- 10 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए। जिससे की खेत में पौध संख्या बनायें रखे जा सके।
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