लहसुन उत्पादन उन्नत उन्नत उत्पादन तकनीक
लहसुन एक कांड वाली मसाला फ़सल है। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसकी एक खस गंध एवं तीखा स्वाद होता है। लहसुन के एक टुकड़े में कई कलियाँ पाई जाती हैं जिन्हें अलग-अलग करके और छीलकर कच्चा एवं पकाकर स्वाद एवं औषधीय और मसाला मसालों के उपयोग के लिए रखा जाता है। इसका उपयोग गले और पेट से संबंधित शर्त में होता है। इसमें पाए जाने वाले चारकोल के पत्थर ही इसके दांत और गंध के लिए उगते हैं। जैसे ऐल्सन ए ऐज़ॉइन इत्यादि। इस कहावत के रूप में बहुत आम बात है "एक सेब एक दिन डॉक्टर को दूर करता है" इसी तरह एक लहसुन की काली एक दिन डॉक्टर को दूर करता है यह एक घातक है और इसमें कुछ अन्य प्रमुख रासायनिक तत्व पाए गए हैं। इसका उपयोग आचार,चटनी,मसाले और डाउनलोड में किया जाता है। लहसुन का उपयोग इसकी सुगंध और स्वाद के कारण लगभग हर प्रकार की यात्रा और माँ की विभिन्न गोलियों में किया जाता है। इसका उपयोग उच्च रक्त घटक, पेट के टुकड़े, पाचन संबंधी विकार, कैंसर और गठिया की बीमारी, नपुंसकता और रक्त की बीमारी के लिए होता है, इसमें एंटीबैक्टीरिया और एंटी कैंसर के लक्षण के स्पष्टीकरण का प्रयोग किया जाता है। यह विदेशी मुद्रा जमा करने में महत्वपूर्ण स्थान है। एम. प्रा. लहसुन का फिल्मांकन 60000 हे., उत्पादन 270 हजार मे. टन। लहसुन की खेती मंदसौर, नीमच, मराठा, धार, एवं लहसुन की खेती प्रदेश के सभी तटों के साथ-साथ इसकी खेती भी संभव है। इस कंपनी की वेबसाइट पर खरीदें पैकिंग, पेस्ट, चिप्स तैयार करने की मशीन रेलवे में जो लैपटॉप है, उसे विदेशी मुद्रा अर्जित करके शामिल किया गया है।
ट्रिल
लहसुन को परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता होती है वैसे ही लहसुन के लिए गर्मी और अध्ययन दोनों ही कुछ कम रहते हैं तो उत्तम रहता है अधिक गर्मी और उत्तर प्रदेश में इसके कंड निर्माण के लिए उत्तम नहीं रहता है छोटे दिन में इसके कंड निर्माण के लिए अच्छा होता है इसके सफल खेती के लिए 29.35 डिग्री सेल्सियस 10 घंटे का दिन और 70% आद्रता उपयुक्त है
भूमि और खेत की तैयारी:-
इसके लिए जल रहित दोमट भूमि अच्छी है। भारी भूमि में इसके कंडों का विकास नहीं हो पाता। विचित्र का पी. एच. मैन 6.5 से 7.5 उपयुक्त रहता है। दो - तीन जुता परतें बनाकर खेत को प्रकार के अच्छे समलैंगि क्यारियाँ एवं सीना की नालियाँ बनी लीं।
लहसुनिया की उत्पत्ति: -यमुना सफेद 1 (जी-1) यमुना सफेद 1 (जी-1) इसके अलावा प्रत्येक शल्क कण ठोस तथा चमकदार त्वचा चांदी की तरह सफेद ए काली क्रीम के रंग की होती है। 150-160 दिन में तैयार हो जाती है 150-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर। यमुना सफेद 2 (जी-50) शल्क कंड ठोस त्वचा सफेद गुच्छे, क्रीम रंग का होता है। निर्मित 130.140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। फ़ल 165-170 दिनों में तैयारी हो जाती है। बेरल धब्बा और झुलसा रोग जैसे उत्पाद सहनशील होते हैं। यमुना सफेद 3 (जी-282) इसका शल्क कण सफेद बड़े आकार का व्यास (4.76 से.मी.) क्लोब का रंग सफेद और काली क्रीम रंग का होता है। 15-16 क्लेब प्रति शाल्क पाया जाता है। यह किस्म 140-150 दिन में तैयार हो जाती है। इसका निर्माण 175-200 आलीशान/हेक्टेयर है। यह जातिवादी की दृष्टी से बहुत ही अच्छा है, जमुना सफेद 4 (जी-323) इसका शल्क कण बड़ा सफेद आकार (4.5 से.मी.) क्लोब का रंग सफेद और काली क्रीम रंग का होता है। 18-23 क्लेब प्रति शाल्क पाया जाता है। यह 165-175 दिन में तैयार हो जाता है। इसका निर्माण 200-250 का है। यह जातिवादी की दृष्टि से बहुत ही अच्छी है प्रदेश में कहा जाता है कि स्थानीय भूटान महादेव के अलावा अमलेटा आदि को भी किसान अपने स्तर पर खेती कर रहे हैं। चतुर्थ का समय - लहसुन की प्रबलता का उपयुक्त समय अक्टूबर-नवंबर होता है। बीज एविएशन कार्टून - लहसुन की नक्काशी के लिए स्वस्थ बड़े आकार की शल्क कंदो (कलियों) का उपयोग किया जाता है। बीज 5-6 अस्वाभाविक / विरासत होती है। शल्ककंद के मध्य स्थित सीधी कलियों का उपयोग बटाई के लिए नहीं करना चाहिए। पूर्व कलियों को मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 3 ग्राम औषधि के समामिश्रण के नासा से उपचारित करना चाहिए। लहसुन की चटनी कूड्स में, चटनी या डिबलिंग विधि से की जाती है। कलियों को 5-7 से.मी. की गहराई में गाड़कर ऊपर से हल्की मिट्टी से ढकना चाहिए। बोते समय कलियों के विवरण भागों को ऊपर ही रखा गया है। समय कलियों से कलियों की दूरी 8 से.मी. वक़्तों की दूरी 15 से.मी.रखना उपयुक्त होती है। बड़े क्षेत्र में फ़सल की हड्डी के लिए गार्लिक प्लान्टर का भी उपयोग किया जा सकता है। खाद एवं गुणवत्ता
भूमि की मात्रा भूमि की उर्वरता पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर प्रति हेक्टेयर 20-25 टन पक्की गोबर या कम्पोस्ट या 5-8 टन वर्मी कम्पोस्ट, 100 कि.ग्रा. नटराजन, 50 कि.ग्रा. परीक्षण एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है। इसके लिए 175 कि.ग्रा. क्वालिटी, 109 कि.ग्रा., डाई अमोनियम फास्फेट एवं 83 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश की आवश्यकता है। गोबर की खाद, डी.ए. पी. पोटाश की पूर्ण मात्रा तथा मात्रा की मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि में मिलाप होना चाहिए। शेष मात्रा की मात्रा को खादी फल में 30-40 दिन बाद चिडकाव के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
सूक्ष्म पोषक तत्व की मात्रा का उपयोग करने से उपज में वृद्धि होती है। 25 कि.ग्रा. जिंक सोलो प्रति हेक्टेयर 3 साल में एक बार उपयोग करना चाहिए। ड्रिप सिचाई एवं फर्टिगेशन का प्रयोग से उपजी में वृद्धि होती है जल शेयर बाजार का प्रयोग ड्रिप सिचाई एवं फर्टिगेशन का प्रयोग माध्यम से करें।
सीचॅल एवं जल व्यापारिक इकाइयों
के चालू पश्चात सीचॅल करना। शेष समय में वनस्पति विकास के समय 7-8 दिन के अंतराल पर तथा कृषि उद्यम के समय में 10-15 दिन के अंतर पर सीना लगाना चाहिए। सींच में हमेशा जमीन एवं खेत में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए। अधिक अंतर्राष्ट्रीय पर सीलबंद करने से कलियां बिखर जाती हैं।
निराय गुडाई एवं
कोलोराडो में नियंत्रण वायु संचार 25-30 दिन बाद हड्डी द्वारा किया जाना चाहिए।
ग्लूकोज़ नियंत्रण प्लुक्लोरोलिन 1 कि.ग्रा. पूर्व या पेड़ा मेंथिलीन के सक्रिय तत्व 1 किलोग्राम। सक्रिय तत्व की बोतलें बाद में 500 लीटर पानी में नासाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छेद करना चाहिए।
प्रमुख कीट
थ्रिप्स - यह छोटे और पीले रंग के कीट होते हैं जो लेंट का रस चूसते हैं। जिससे उनका रंग चितकबरा दिखाई देता है। तीसरे प्रकोप से नामांकन के शीर्ष भूरे भूरे और मुरझाकर सु ख जाते हैं।
नियंत्रण:-
इस किट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली./15 ली. पानी या थायेमेथाक्झाम 125 ग्राम/हे. + सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घुला हुआ पानी 15 दिन के अंतकाल पर छिडकाव करना चाहिए।
शीर्ष छेडेक कीट - इस कीट की मांगट या लार्वी स्टीन के आधार को बोट शाल्क कंद के प्रवेश से गुग्गन पैदा कर फल के अंदर नुकसान होता है।
नियंत्रण:-
1. उपयुक्त कृषि चक्र एवं उन्नत तकनीक से खेती करें।
2. फोरेट 1-1.5 कि. सक्रिय ग्राम तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में वृद्धि कर मिलावें।
3. इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली./15 ली. पानी या थायेमेथाक्झाम 125 ग्राम/हे. + सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घुला हुआ पानी 15 दिन के अंतकाल पर छिडकाव करना चाहिए।
प्रमुख रोग
निकोल धब्बा - बैंगनी धब्बा रोग (पर्पिल ब्लाच) इस रोग के प्रभाव से अभ्यारण्य में नामांकन और उर्धव तने पर सफेद और अंदर की तरफ दर्ज किया जाता है, जिससे तना और पत्ते का आकार गिर जाता है। फरवरी एवं अप्रैल में इसका प्रोक्रोप अधिकतर होता है।
रोकथाम एवं नियंत्रण
1 .मैकोजेब+कार्बेन्डिज़म 2.5 ग्राम दवा के सममिश्रण से प्रति किलों बीज की मात्रा से बीजोपचार कर सकते हैं।
2. मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बोन्डिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की मात्रा से 15 दिन की दवा का 15 दिन में दो बार उपचार करें।
3. रोग निवारक दवा जैसे जी-50, जी-1, जी 323 लगावें।
झुलसा रोग - रोग से प्रोक्रोप की स्थिति में डंका के उर्ध्व स्तम्भ पर कच्चे माल के रंग के स्थान निर्धारित है। मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडाइज्म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की मात्रा से कनाशी दवा का 15 दिन के अंतर पर दो बार का
नियंत्रण
मैकोजेबल 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी सेन्डोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कनाशी दवा का 15 दिन के अंतर पर नियंत्रण अंतर्वस्तु पर दो बार चर्चा करें। लहसुन की
कटाई
50% वजन घटाने के स्तर पर अज्ञात होना चाहिए।
डुबकी एवं लहसुन का सुखाना - जिस समय पौधौं की पत्तियाँ, स्मारक पड़ जाएँ और कॉन्फ़्रेंस लग जाएँ, सीलबंद की सुविधा मिलनी चाहिए। इसके बाद गुलबरो को 3-4 दिन तक छाया में सुखा लेते हैं। फिर 2 से 2.25 से.मी. ठीक है बेरोजगारों को कांडों से अलग कर लेते हैं। कन्दो को साधारण भण्डारण में पूर्ण तह में रखा जाता है। ध्यान रखें कि मशीन पर मसाला न हो। लहसुनिया के साथ जुड़ा हुआ भंडार भंडार है।
छताई . लहसुन को बाजार या भंडारन में रखने के लिए उनकी अच्छी किस्म की छटाई रखने से ज्यादा से ज्यादा फायदा होता है और भंडारन में नुकसान का काम होता है इससे कट फेट बीमारी और बच्चों से प्रभावित लहसुन छंटकर अलग कर लेते हैं।
उपजी
लहसुन की उपजी अपनी विशिष्ट भूमि और फल की झलक पर आपत्ति जताती है प्रति हेक्टेयर 150 से 200 अमेरीकी उपजी मिल जाती है |
भण्डारण की
अच्छी प्रक्रिया से सुखाए गए लहसून को उनकी छटाई कर के साधारण हवादार घर में रख सकते हैं। 5.6 माह भण्डारण से 15.20 प्रतिशत तक का नुकसान मुख्य रूप से अनफॉलो से होता है। इनवेस्टमेंट बैंड सहित अन्य सामान रखने से कम नुकसान होता है।
सौजन्या :-मध्यप्रदेश कृषि विभाग
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