I pili sarso ki unnat kheti Kaise kare | पीली सरसों की खेती - Malwa ki kheti

pili sarso ki unnat kheti Kaise kare | पीली सरसों की खेती

pili sarso ki kheti
Yellow Mustard

पीली सरसों तोरिया की तरह कैच क्राप के रूप में खरीफ एवं रबी के मध्य में बोयी जाती है। इसकी खेती करके अतिरिक्त लाभ आर्जित किया जा सकता है।

खेती की तैयारी


पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयाँ देशी हल, कल्टीवेटर/हैरों से करके पाटा देकर मिट्टी भुरभुरी बना लेना चाहिए।

उन्नतिशील प्रजातियाँ


क्र.सं. प्रजातियाँ विमोचन की तिथि नोटीफिकेशन की तिथि पकने की अवधि (दिनो में) उत्पादन क्षमता (कु०/हे0) तेल का प्रतिशत विशेष विवरण
1 पीताम्बरी 2009 31.08.10 110-115 18-20 42-43 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु
2 नरेन्द्र सरसों-2 1996 09.09.97 125-130 16-20 44-45 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु
3 के०-88 1978 19.12.78 125-130 16-18 42-43 सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु

बीज की मात्रा


पीली सरसों का बीज 4 किग्रा०0 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

बीज शोधन


बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा०0 बीज की दर से बीज को उपचारित करके ही बोयें। यदि थीरम उपलब्ध न हो तो मैकोजेब 3 ग्राम प्रति किग्रा०० बीज की दर से उपचारित किया जा सकता है। मैटालेक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किग्रा०० बीज की दर से शोधन करके पर प्रारम्भिक अवस्था में सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग की रोकथाम हो जाती है।

बुआई का समय


पीली सरसों की बुआई 15 सितम्बर 30 सितम्बर तक की जानी चाहिए। गेहूँ की अच्छी फसल लेने के लिए पीली सरसों की बुआई सितम्बर के पहले पखवारे में समय मिलते ही की जानी चाहिए।
उर्वरक की मात्रा
उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए यदि मिट्टी परीक्षण न हो सके तो
  • असिंचित दशा में 40 किग्रा०0 नाइट्रोजन, 30 किग्रा०0 फास्फेट तथा 30 किग्रा०0 पोटाश प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
  • सिंचित क्षेत्रों में 80 किग्रा०0 नाइट्रोजन 40 किग्रा०0 फास्फेट एवं 40 किग्रा०0 पोटाश प्रति हे0 देना चाहिए। फास्फेट का प्रयोग एस.एस.पी. के रूप में अधिक लाभदायक होता है। क्योंकि इससे 12 प्रतिशत गंधक की पूर्ति हो जाती है। फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा अंतिम जुताई के समय नाई या चोगे द्वारा बीज से 2-3 सेमी. नीचे प्रयोग करनी चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई टापड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। गंधक की पूर्ति हेतु 200 किग्रा०0 जिप्सम का प्रयोग अवश्य करे तथा 40 कुन्तल प्रति हे0 की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए।

बुआई की विधि


बुआई देशी हल से करना लाभदायक होता है। एवं बुआई 30 सेमी०की दूरी पर 3 से 4 सेमी की गहराई पर कतारो में करना चाहिए एवं पाटा लगाकर बीज को ढक देना चाहिए।
निराई-गुड़ाई
घने पौधो को बुआई के 12 से 15 दिन के अन्दर निकालकर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी कर देना चाहिए तथा खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराई गुड़ाई भी साथ कर देनी चाहिए तथा पेन्डीमेथलीन 30 ई.सी. का 3.3 लीटर प्रति हे0 की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के बाद तथा जमाव से पहले छिड़काव करना चाहिए।
सिंचाई
राई/सरसों की भाँति फूल निकलने से पूर्व की अवस्था पर जल की कमी के प्रति पीली सरसो संवेदनशील है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इस अवस्था पर सिंचाई करना आवश्यक है। उचित जल निकास की व्यवस्था रखें।

फसल सुरक्षा

(क) प्रमुख कीट


  • आरा मक्खी

    इस कीट की सूड़ियाँ काले स्लेटी रंग की होती है जो पत्तियो को किनारो से अथवा पत्तियों में छेद कर तेजी से खाती है। तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।
  • चित्रित बग

    इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ चमकीले काले, नारंगी एवं लाल रंग के चकत्ते युक्त होते है। शिशु एवं प्रौढ पत्तिया, शाखाओं, तनो, फूलो एवं फलियों का रस चूसते हैं जिससे प्रभावित पत्तियाँ किनारो से सूख कर गिर जाती है। प्रभावित फलियों में दाने कम बनते है।
  • बालदार सूड़ी

    सूड़ी काले एवं नारंगी रंग की होती है तथा पूरा शरीर बालो से ढका रहता है। सूडियाँ प्रारम्भ से झुण्ड मे रहकर पत्तियों को खाती है तथा बाद मे पूरे खेत में फैल कर पत्तियो को खाती है तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।
  • माहूँ

    इस कीट की शिशु एवं प्रौढ़ पीलापन लिए हुए रंग के होते है जो पौधो के कोमल तनों, पत्तियों, फूलो एवं नई फलियों के रस को चूसकर कमजोर कर देते हैं। माहूँ मधुस्राव करते है जिस पर काली फफूँदी उग आती है जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है।
  • पत्ती सुरंगक कीट

    इस कीट की सूडी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती है जिसके फलस्वरूप पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखाये बन जाती है।
आर्थिक क्षति स्तर
कं.सं. कीट का नाम फसल की अवस्था आर्थिक क्षति स्तर
1 आरा मक्खी वानस्पतिक अवस्था एक सूड़ी प्रति पौधा
2 पत्ती सुरंगक कीट वानस्पतिक अवस्था 2 से 5 सूड़ी प्रति पौधा
3 बाल दार सूड़ी वानस्पतिक अवस्था 10-15 प्रतिशत प्रकोपित पत्‍तियां
4 माहूँ वानस्पतिक अवस्था से फूल व फली आने तक 30-50 माह प्रति 10 सेमी० मध्य ऊपरी शाखा पर या 3.0 प्रतिशत माहूँ से ग्रसित पौधे।
नियन्त्रण के उपाय
  • गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए।
  • संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
  • आरा मक्खी की सूडियों को प्रातः काल इक्ट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • प्रारम्भिक अवस्था में झुण्ड में पायी जाने वाली बालदार सूडियों को पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • प्रारम्भिक अवस्था में माहूँ से प्रभावित फूलों, फलियों एवं शाखाओं को तोड़कर माहूँ सहित नष्ट कर देना चाहिए।
  • यदि कीट का प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर पार कर गया हो तो निम्नलिखित कीटनाशों का प्रयोग करना चाहिए।
    • आरा मक्खी एवं बालदार सूड़ी के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 5 प्रतिशत डी.पी. की 20-25 किग्रा०0 प्रति हेक्टेयर बुरकाव अथवा मैलाथियान 50 प्रतिशत ई.सी. की 1.50 लीटर अथवा डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई.सी. की 500 मिली. मात्रा अथवा क्युनालफास 25 प्रतिशत ई.सी. की 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
    • माहूँ चित्रित बग, एवं पत्ती सुंरगक कीट के नियंत्रण हेतु डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. अथवा मिथाइल-ओ-डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. की 1.0 लीटर अथवा मोनोकोटोफास 36 प्रतिशत एस.एल. की 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रयोग किया जा सकता है।
(ख) प्रमुख रोग
अल्टरनेरिया
इस रोग से पत्तियो तथा फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बनते है जो गोल छल्ले के रूप में पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते है। तीव्र प्रकोप की दशा में धब्बे आपस में मिल जाते है जिससे पूरी पत्ती झुलस जाती है।
सफेद गेरूई
इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले बनते है जिससे पत्तियाँ पीली होकर सूखने लगती है। फूल आने की अवस्था में पुष्पक्रम विकृत हो जाता है जिससे कोई भी फली नहीं बनती है।
तुलासिता
इस रोग में पुरानी पत्तियों की उपरी सतह पर छोटे छोटे धब्बे तथा पत्तियों की निचली सतह पर इन धब्बों की नीचे सफेद रोयेदार फफूँदी उग आती है। धीरे-धीरे पूरी पत्ती पीली होकर सूख जाती है।
नियंत्रण के उपाय
  • बीज उपचार
    • सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग के नियंत्रण हेतु मैटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू.एस. 2.0 ग्राम प्रति किग्रा०0 बीज की दर से बीज शोधन कर बुआई करना चाहिए।
    • अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू.एस. की 2.5 ग्राम प्रति किग्रा०0 बीज की दर से बीज शोधन कर बुआई करना चाहिए।
  • भूमि उचपार
    भूमि जनित एवं बीज जनित रोगों के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) टाइकोडरमा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू पी.अथवा टाइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू पी की 2.5 किग्रा० प्रति हे0 60-75 किग्रा० सड़ी हुए गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि से मिला देने से राई-सरसों के बीज/भूमि जनित आदि रोगों के प्रबन्धन में सहायक होता है।
  • पर्णीय उपचार
    अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा, सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग के नियंत्रण हेतु मैकोजेब 75 डब्लू पी. की 2.0 किग्रा०0 अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा०0 अथवा जिरम 80 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा० अथवा कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 3.0 किग्रा० मात्रा प्रति हेकटेयर लगभग 600-750 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(ग) प्रमुख खरपतवार
बथुआ, सेन्जी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी-मटरी, अकरा-अकरी, जंगली गाजर, गजरी, प्याजी, खरतुआ सत्यानाशी आदि।
नियंत्रण के उपाय
  • खरपतवारनाशी रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण करने हेतु फलूक्लोरैलीन 45 प्रतिशत ई.सी. की 2.2 ली. मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुआई के तुरन्त पहले मिट्टी में मिलाना चाहिए। अथवा पेण्डीमेथलीन 30 प्रतिशत ई.सी. की 3.30 लीटर प्रति हेक्टेयर उपरोक्तानुसार पानी से घोलकर फलैट फैन नाजिल से बुआई के 2-3 दिन के अन्दर समान रूप से छिड़काव करे।
  • यदि खरपतवारनाशी रसायन का प्रयोग न किया गया हो तो खुरपी से निराई कर खरपतवारों का नियंत्रण करना चाहिए।
कटाई-मड़ाई
जब फलियाँ 75 प्रतिशत सुनहरे रंग की हो जाय तो फसल को काटकर सूखा लेना चाहिए तत्पश्चात मड़ाई करके बीज को अलग कर लें। देर से कटाई करने से बीजों के झड़ने की आशंका रहती है बीज को अच्छी तरह सुखा कर ही भण्डारण करें, जिससे इसका कुप्रभाव दानों पर न पड़े।

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